
आरा. कवि, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी और समाजकर्मी पवन श्रीवास्तव की शोक सभा कलक्ट्री तालाब स्थित लोक नायक जयप्रकाश स्मारक स्थित मुक्त कला मंच पर आयोजित किया गया. शोक सभा में मुख्य वक्ताओं के रूप में उनके करीबी रहे पूर्व राज्यसभा सांसद व बिहार सरकार के मंत्री शिवानन्द तिवारी, पूर्व विधायक रमाकांत ठाकुर,प्रो. कन्हैया बहादुर सिन्हा, जे. पी. सेनानी रविन्द्र नाथ त्रिपाठी, रेड क्रॉस सोसायटी की सचिव विभा सिन्हा मंचासीन रहीं.
कार्यक्रम का प्रारंभ दिवंगत कवि पवन श्रीवास्तव की तस्वीर को तिलक लगाकर उनकी भवह आरती वर्मा, रिमी सिन्हा, बेटा चुटुर उनकी बहन हिंगमनी और उनके साथ कई महिलाओं ने आरती किया. तिलक और आरती के बाद आये आगन्तुकों ने उन्हें माल्यार्पण और पुष्पाजंलि अर्पित किया. पवन श्रीवास्तव को तिलक बहुत पसंद था वे हर मौके पर तिलक लगाते थे और आगन्तुकों को भी लगाते थे. वे एक मिलनसार व्यक्ति थे.
मुख्य वक्ता के रूप में इस मौके पर पूर्व राज्य सभा सांसद व बिहार सरकार में मंत्री रहे शिवानन्द तिवारी ने पवन श्रीवास्तव को याद करते हुए कहा कि पवन मुझसे 10 साल छोटा था लेकिन कभी ऐसा लगा नही कि वह हमारा साथी नही है. इस जे पी मंच की परिकल्पना उन्ही की थी. जिस मंच को उन्होंने बनाया आज वही पर उनकी श्रद्धांजलि हो रही है. उन्होंने कहा कि हमारी मुलाकात 1974 के आंदोलन के दौरान हुई थी. उस दौरान कबीर खान यहाँ के कलक्टर हुआ करते थे और इंदिरा गांधी परिवार से उनके करीबी की चर्चा की. घायल व्यक्ति पर ही जब FIR कर उसे कलक्टर की गाड़ी में बैठा लिया गया तो उस गाड़ी को चारों ओर से घेर पवन श्रीवास्तव द्वारा लिखित गीत “लोहा से लोहा बजाने चलें हैं और अपने वतन को जगाने चले हैं” का गान शुरू हुआ. आखिरकार कलक्टर को उसे छोड़ना पड़ा.
उनके व्यक्तित्व की खूबी थी कि अलग विचार और संस्था से जुड़ने के बाद भी उनका रिश्ता सबसे अच्छा था. श्री तिवारी ने कहा कि उनका पहला फंड पवन श्रीवास्तव के अनुशंसा पर मुस्लिम बस्ती में निर्माण के लिए जारी हुआ. उन्होंने बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी कहा और कहा कि उनकी रचनाओं को छापना चाहिए.
मंच संचालन प्रो. नीरज सिंह ने किया. पवन श्रीवास्तव के करीबी मित्रों में से एक प्रो. नीरज ने उनकी बातों को याद करते हुए कहा कि वे हमेशा कहा करते थे कि हममें से अगर कोई नही रहा तो बचने वाला मंच संचालन का दायित्व लेगा. आज उनके जाने के बाद मंच संचालन के लिए आते ही उनकी वह पुरानी बात याद आ गयी.
सलिल भारतीय ने कहा कि पवन श्रीवास्तव 1974 आंदोलन के अग्रणी थे. उन्होंने रमना में स्थित झंडोत्तोलन के स्थान पर पोल पर चढ़ गए और काला झंडा फहरा दिया. ये सब इतना तीव्र हुआ कि किसी को यकीन नही हुआ. वे बहुत ही साहसिक और निडर व्यक्ति थे. वे हमेशा कहते थे “फिकिर नॉट सब फाइन है.”
इस मौके पर रेड क्रॉस की सचिव विभा सिन्हा ने कहा कि उनसे बातें करने पे उनके हास्य विनोद काका हाथरसी की याद दिलाते थे तो आध्यात्मिक चर्चा पर वे एक सन्त लगते थे.
कवि जितेंद्र कुमार ने कहा कि मकर संक्रांति पर अक्सर हमलोग मिला करते थे. काव्य, विनोद की बातें होती थी. हिंदी के साथ अंग्रेजी भाषा पर भी उनकी गजब कमांड थी. सुगर की वजह से आंखे चली गयी तो मुस्कुरा के कहते थे कि अब मैं बामपंथी हो गया हूँ क्योंकि अब बायां आँख से दुनिया देखने लगा हूँ.उनके बड़े भाई सुशील कुमार ने कहा कि समान विचारों वाले में प्रतिस्पर्धा होती है मित्रता विपरीत विचारों वाले में ही होती है. वे भाई थे लेकिन एक सखा एक मित्र एक सहयोगी की तरह ही मैं हमेशा रहा. उन्होंने अपने छोटे भाई की लिखित दो पंक्तियां याद करते हुए कहा -“महाकाव्य लिखने में ही सब कथा गई, सब गीत गया,जीने की तैयारी में ही सारा जीवन बीत गया.”
राणा प्रताप सिंह ने कहा कि वे बड़े जीवट व्यक्ति थे चाहे सामाजिक क्षेत्र हो या साहित्य हो या कला या अध्यात्म का क्षेत्र हो. वे किसी भी चीज को बड़े ढंग से अभिव्यक्त करते थे.
1974 आंदोलन के आंदोलनकारी और उनके पुराने मित्रों में से एक दीपक श्रीवास्तव ने कहा कि वे इतने क्रिएटिव दिमाग के व्यक्ति थे कि किसी क्षेत्र में कोई भी काम तुरन्त कर देते थे.
पूर्व विधायक रामाकांत ठाकुर ने भोजपुरी में कहा कि “हरदिल अजीज मित्र के जाए से हमरा बहुत दुःख भईल. परिवार के दुःख सहे के हिम्मत देस.”
इस मौके पर उन्हें याद करते हुए कहा सुशील तिवारी ने कहा कि पवन जी के बारे में किसी भी क्षेत्र की चर्चा की जाए वह कम है. किसी के साथ रिश्ते कैसे निभाये जाते हैं और किसी भी बात को कहीं कैसे कहना चाहिए इसमें वे निपुण थे. राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच रखने वाले पवन जी के जाने के बाद एक कोना जरूर खाली रहेगा अनन्त तक.
उनके छोटे भाई अशोक मानव ने बताया कि आगामी 16 फरवरी को सुबह में उनकी अस्थि कलश पुणे से आरा आएगी जिसे शहर के विभिन्न मार्गों के भ्रमण के बाद जे पी स्मारक मुक्ताकाश मंच पर लाया जाएगा. जहाँ एक श्राद्धाजंलि सभा आयोजित होगी और उसके उपरांत उनके पैतृक गाँव कल्याणपुर पकड़ी पुष्पांजलि के लिए ले जाया जाएगा. गाँव से उनकी अस्थि कलश सलेमपुर घाट पर विसर्जित किया जाएगी.इस मौके पर शहर के हर वर्ग के व्यक्ति शामिल हुए, जिसमें छात्र, शिक्षक, अधिवक्ता, प्रोफेसर, डॉक्टर,साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार, समाजसेवी और बुद्धिजीवियों की विशेष भागीदारी रही. उपस्थित गणमान्य लोगों राणा प्रताप सिंह,दीपक श्रीवास्तव, सुशील तिवारी,अरुण सिंह भोले, कयामुद्दीन अंसारी, दिलराज प्रीतम,सलिल भारतीय, गुलाबचंद प्रसाद, अरुण श्रीवास्तव, वीरेंद्र सिंह, अश्विनी कुमार,जितेंद्र शुक्ला, भाजपा नेता धीरेंद्र सिंह,कौशल कुमार विद्यार्थी, शिव गुंजन, सरफराज अहमद,जय प्रकाश सिंह, विनोद सिंह, हींगमणि, सोनू सिंह,सचिन सिन्हा, बिहियां के पूर्व मुखिया मो.जुबैर खान, अमरेन्द्र कुमार, रंगकर्मी पंकज भट्ट, अशोक मानव,ओ पी पांडेय, संजय पाल, अनिल तिवारी दीपू,लवली कुमारी,चित्रकार कमलेश कुंदन जैसे कई शहर के विशिष्ट व प्रबुद्ध जन थे.