साहित्य

अतिक्रमण

एक कहानी

डॉ. स्वयंबरा 

 

 

जनवरी के पहले सप्ताह में ऐसी कड़ाके की ठंढ सालों बाद पड़ी थी। सर्द हवाएं ऐसी बह रहीं थीं मानो जिस्म चीर देंगी। कुहासे की सफेद चादर में लिपटा सारा संसार किसी मुर्दाघर की तरह प्रतीत होने लगा था। धूप सहमी-सिकुड़ी बेरौनक हो गयी थी। ऐसे मौसम में भी तिरसठ वर्षीय शिवराम रोज की तरह पराठे बेचने के लिए दुर्गा मंदिर के पास की पटरी पर अपना ठेला लगा चुका था। पराठे बेचने से पहले शिवराम मंदिर के गेट तक जाकर मत्था टेकता था। उस दिन भी वह मंदिर के फाटक पर पहुंचा था कि देखा उसके ठेला को गरजती हुई बड़ी मशीन ने उलट दिया। स्टोव टूट गया। गुथा आटा, सत्तू बिखर गया । अचार की बरनी फूट गयी।

 

शिवराम घबरा गया। वह तेजी से ठेला की तरफ आने लगा। पर रास्ते मे पड़ी ईंट पर पैर अटका और वह गिर पड़ा।

 

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दुर्गा मां का यह मंदिर शहर की भीड़भाड़ से दूर स्थित था। यहां सिर्फ दर्शन करने या पास के पॉलिटेक्निक कॉलेज में पढ़ने वाले आते। उन्हीं से शिवराम के पराठों की बिक्री होती। इसके बाद गरीबों की बस्तियां शुरू हो जातीं। पर यह जगह शिवराम की झोपड़ी के बिल्कुल पास थी। ऐसे में गठिया के मरीज शिवराम को यहां पराठे का ठेला लगाने में सहुलियत होती। शिवराम की पत्नी कलावती लकवाग्रस्त थी। वह घर में ही रहती थी। ठेला पास होने से उसका ख्याल रखना भी संभव हो पाता था। पराठे के साथ अचार शिवराम की विशेषता थी जो मौसम में उपलब्ध सब्जियों, फलों में सरसों डालकर बनायी जाती।

 

दिन भर की बिक्री के बाद इतनी आय हो जाती कि शिवराम और उसकी पत्नी कलावती को दो समय की रोटियां और जरूरी दवाईयां नसीब हो सके।

 

रोज की तरह उस दिन भी शिवराम स्टाल लेकर निकला तो देखा बस्ती के लोगों की भीड़ इकट्ठी हुई थी। खूब शोर हो रहा था। शहर के बाहरी इलाके में ऐसा होना अस्वाभाविक था। वह बात समझने की कोशिश कर रहा था कि उसने दूर से एक विशाल मशीन को आते देखा। किसी कहानी के राक्षस जैसा था वह कि देखकर ही भय लगे। हालांकि उस मशीन और उसका काम शिवराम की रुचि का नहीं था तो उसने उसपर ध्यान नहीं दिया। मंदिर के पास भीड़ होने के कारण उसे यह भी लगा कि आज बिक्री ज्यादा होगी। अतएव वह उत्साहित होकर तेजी से मंदिर की तरफ बढ़ चला कि यह हादसा हुआ।

 

 

“आहो बाबा उठs । जल्दी उठ s। धऊग s घरे देने। सब कुछ बर्बाद होखता। घर उजाड़sतारन स s। उठ s बाबा। उठ s।” – किसी ने जोर से आवाज़ें दीं

 

शिवराम ने आंखें खोलीं तो चारो तरफ भगदड़ दिखा। दूर से चीखने की आवाजें आ रहीं थीं। उसे उठानेवाला भी अब भागा जा रहा था। शिवराम ने खड़े होने की कोशिश की पर दर्द से चीख निकल गयी। उसे लगा एक पैर में जोर की मोच आयी है। पर वह किसी तरह उठा। बर्तन उठाए। लंगड़ाते कराहते झोपड़ी की ओर बढ़ा। पर वहां तो कोहराम मचा था। पूरी की पूरी बस्ती जमींदोज थी। लोग रो रहे थे। अपनों का नाम लेकर पुकार रहे थे। बिखरे सामान को समेट रहे थे। खो गए घर के हिस्से ढूंढ रहे थे। शिवराम अवाक था।

यह अचानक क्या हुआ। तभी उसे कलावती का ध्यान आया। वह कहां है? वह तो बिना सहारे के चल भी नहीं पाती थी। कहाँ होगी वो। शिवराम अब अपना दर्द भूल चुका था। वह तेजी से चलकर उस जगह पहुंचा जहां झोपड़ी थी पर वहां टूटी छप्पर, दीवार और बिखरे बर्तन दिख रहे थे। उसने पुकारना शुरू किया – ” कलावती कलावती”

….पर कोई जवाब नहीं आया।

शिवराम बदहवास हो गया। वह तेज़ी से टूटी बिखरी झोपडी के हिस्से को हटाने लगा कि उसे कलावती दिखी। मृत कलावती। बेजान कलावती।चलने, भागने में अक्षम कलावती, घर से बाहर निकल न सकी और उसके शरीर पर पूरा का पूरा छप्पर गिर पड़ा।

 

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इस घटना को साल भर बीत चुका है। बस्ती फिर से सांसें लेने लगी है।

 

शिवराम का पैर उस हादसे के बाद थोड़ा मुड़ गया है। वह दिन रात बड़बड़ाता है। लोग खाने को दे देते तो खा लेता है। कहीं भी सो जाता है। 

कभी-कभी बहुत गुस्सा हो जाता है। किसी भी मशीन पर पत्थर चलाने लगता है। फिर चाहे वह वहां से गुज़र रहा ट्रैक्टर हो, ऑटो हो या कुछ और भी। बदले में उसे भी मार पड़ जाती है। ये अब रोज का काम हो चुका है। 

 

और आज बस्ती में नेता जी पधारे हैं। चुनाव नजदीक है और बस्ती एक बड़ा वोट बैंक है।

 

मंच पर नेता जी भाषण दे रहें हैं -” जो हुआ उसके लिए मुझे बहुत खेद है। हम वो नहीं कि अतिक्रमण कहकर बस्तियां उजाड़ दें। शहर को सुंदर दिखाने के लिए दीवारें खड़ी कर दें। जो हुआ बुरा हुआ।…. आपकी पीड़ा से मेरी आँखें भर आयीं हैं।……”

 

शिवराम ने इसे सुना। उसे जोरों की हंसी आयी। वह हंसने लगा। ठहाके लगाने लगा। फिर अचानक ही उसने एक पत्थर उठाया और पूरी ताकत लगाकर नेता जी की तरफ़ फेंका।

 

समर्थक उसकी तरफ लपके। उसे पकड़कर वहां से दूर ले गए। उसपर लात घूंसों की बौछार करने लगे। जबतक बस्ती के लोग बचाने पहुंचते कि मारनेवालों में कोई चिल्लाया -” अरे ये पागल तो मर गया।”

और शिवराम मर गया था। वह अब सच में मर गया था। 

इधर भाषण जारी था -“हमने सुना है कि इस बस्ती के साथ क्या अन्याय हुआ है। हम आपको न्याय दिलाएंगे। बस्ती के प्रत्येक घर को मुवावजा मिलेगा……बस आप इसबार हमें ही वोट……….”

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