CAA के तहत बिहार में पहली बार किसी को मिली नागरिकता, आरा की सुमित्रा रानी साहा 40 साल बाद अब बनी भारतीय
रूपेन्द्र मिश्र
“पिता भारतीय थे। पति भी भारतीय थे। मै जन्म से भारतीय होकर भी भारतीय नागरिक नहीं थी। जीवनसाथी भारतीय और मेरा दुर्भाग्य की उनके गुजरने के इतने सालों तक मै नागरिक नहीं हो पाई। क्योंकि, मुझे क़ानूनी रूप से सब साबित करना था।” ये सब बातें बताते हुए सुमित्रा रानी साहा उर्फ़ सुमित्रा प्रसाद की आँखें भर जाती है। उन्हें ख़ुशी होती है कहते हुए की हाँ मै भारतीय सुमित्रा रानी साहा की यह कहानी बिहार के आरा शहर की है। वे चित्रटोली रोड में रहती हैं। भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए उन्हें लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ी। बिहार में यह पहला मामला है जब नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के तहत किसी को भारतीय नागरिकता मिली है। वे पिछले 40 साल से वीजा लेकर रह रही थीं।
राजशाही बांग्लादेश में हुआ जन्म, झेलना पड़ा विभाजन का दंश
सुमित्रा रानी साहा का जन्म राजशाही बांग्लादेश में 5 फ़रवरी 1964 में हुआ था। उनके पिता मदन गोपाल चौधरी कटिहार में रहते थे। सुमित्रा रानी साहा ने बातचीत में बताया कि पिताजी के ऊपर चार भाई-बहनो का बोझ था और आर्थिक स्थिति सुदृढ़ नहीं थी। उनकी तबीयत भी खराब हो गई थी। इसी वजह से जब मै पांच- छः साल की थी तब 1970 में अपनी बुआ के घर चली गई थी। जो अब के बांग्लादेश में पड़ता है। उस वक्त विभाजन नहीं हुआ था। पर, साल 1971 में विभाजन की विपत्ति पद गई। मैंने वहां 10वीं तक पढ़ाई की। वहां से 1985 में भारत आ गई, जिसके बाद कभी बांग्लादेश लौट कर नहीं गई, लेकिन उनको भारत में ही वीजा लेकर रहना होता था।’सुमित्रा रानी साहा ने बताया कि ‘जब वह भारत लौटी तो उनकी उम्र 20 साल थी। भारत लौटने के बाद वो कटिहार में अपने पिता के पास लौट आई। फिर 10 मार्च 1985 में उनकी शादी को आरा शहर के चित्र टोली रोड निवासी परमेश्वर प्रसाद से हो गई। उसके बाद से ही सुमित्रा पति के साथ आरा में रहने लगी। वे वीजा लेकर यहां रह रही थी। हर साल वीजा के लिए परेशान होना पड़ता था।
संघर्ष से भरा रहा जीवन, पति का भी छूटा साथ
सुमित्रा रानी साहा का जीवन संघर्षो से भरा रहा। उनकी शादी चित्रटोली रोड के निवासी परमेश्वर प्रसाद से हुई। उनकी इलेक्ट्रोनिक एंड होम अप्पलायंसेस की दुकान थी। साल 2010 में बैक बोन की वजह से पति परमेश्वर प्रसाद की मौत हो गई। पति की मृत्यु के बाद भी कमजोर ना पड़ते हुए उन्होंने स्वयं दुकान की ज़िम्मेदारी सम्भाली। उसी दुकान के सहारे परिवार का भरण- पोषण चलने लगा।
उन्हें तीन बेटियां प्रियंका प्रसाद, प्रियदर्शनी प्रसाद और ऐश्वर्या प्रसाद हैं। एक पुत्र भी था जिसकी मृत्यु साल 2022 में हो गई। संघर्षो के आगे ना झुकते हुए और बेटियों का साथ मिलने से उन्होंने परिवार और दुकान दोनो सम्भाला। उसी के सहारे दो बेटियों की शादी भी की।
अक्सर डराती थी नागरिकता की बात, लोग कहते थे वापस जाना होगा
सुमित्रा प्रसाद की बेटी ऐश्वर्या प्रसाद ने बताया कि मोहल्ले के कुछ लोग तो हमेशा साथ देते थे। पर कुछ ऐसे भी थे जिनकी बाते सुनकर डर लगता था। मम्मी को लेकर लोग बोलते थे की वापस बांग्लादेश जाना पड़ेगा। हमलोग का तो जन्म यहीं हुआ था। हमारा क्या दोष था। 2023 में वीज़ा में देरी हुई थी तो स्थानीय थाना ने हमें बुलाया था। उन्होंने भी मम्मी को बांग्लादेश वापस जाने को कह दिया था। हालाँकि, बाद में कोलकाता से ही वीज़ा मिला। ऐश्वर्या ने बताया कि जब इस बार साल 2024 में वीज़ा बढ़ाने की बात आई तो CAA के बारे में पता चला। मैंने पूरी जानकारी लेकर आवेदन किया। तीन महीने की मशक़्क़त के बाद सफलता हासिल हुई और मम्मी को भारत के नागरिकता का प्रमाण पत्र मिल गया। मम्मी के साथ हीं हम तीनो बहनों के लिए ये बेहद ख़ुशी का पल है। हमारा संघर्ष कामयाब हुआ है।
अब नहीं होना पड़ेगा सरकारी सुविधाओं से वंचित
भारतीय नागरिकता मिलने के बाद सुमित्रा का परिवार काफी खुश है। बेटी ऐश्वर्या अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहती है कि उनकी मां को अभी तक सभी सरकारी सुविधा से वंचित रहना पड़ रहा था। आधार कार्ड, राशन कार्ड, पैन कार्ड अभी तक नहीं बन पाया था। गैस कनेक्शन भी नहीं मिलता था। लेकिन, अब सभी सुविधाएं मिलेंगी।