विलुप्त हो रही पारंपरिक गंवई फगुआ गायन पर झूम उठा शहर, कविताई संस्था का भव्य होली मिलन समारोह संपन्न

आरा। होली के अवसर पर साहित्यिक संस्था कविताई के बैनर तले चंदवा मोड़ स्थित रेनबो किड्स प्ले स्कूल में ‘कविताई फगुआ’ होली मिलन समारोह का आयोजन किया गया। कविताई फगुआ के इस आयोजन की शुरूवात स्वस्तिवाचन एवं सरस्वती वंदना से हुई, जहां पंडित संतोष पाठक ने स्वस्तिवाचन किया एवं आकांक्षा ओझा ने माँ सरस्वती की वंदना सुनाई। इसके साथ ही आगत अतिथि डॉ कन्हैया सिंह, डॉ विजय गुप्ता, डॉ मदन मोहन द्विवेदी, डॉ संजीत, डॉ अनिल सिंह, वरिष्ठ कवियित्री मीनाक्षी श्रीवास्तव, वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र, संतोष श्रेयांश, आनंद वात्स्यायन, कौशल कुमार, डॉ स्वयंबरा एवं संजय शाश्वत ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर माँ सरस्वती को पुष्प अर्पित किया। इसके बाद सभी ने एकदूसरे को अबीर- गुलाल लगाया।
कविताई फगुआ नाम के अनुरूप हीं कार्यक्रम को दो सत्र में चलाया गया। पहले सत्र में आमंत्रित कवि सुमित भास्कर, विपुल प्रकाश पांडेय, राहुल कुमार सिन्हा, विकास पांडेय, दीपक सिंह निकुम्भ, ममतादीप, आरण्या शिवाली, करुणा कुमारी एवं मीनाक्षी श्रीवास्तव ने होली के रंगो से सराबोर हास्य एवं प्रेम रस की कविताएँ प्रस्तुत की।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में विशुद्ध व पारम्परिक फगुआ गवनई हुई। दियरा क्षेत्र से आए हुए पारंपरिक गवनई के व्यास सिताराम यादव, नाल वादक ललितमोहन ओझा, बुद्धिराम ओझा, नंदकुमार यादव, मदन मोहन पांडेय, गुड्डु ओझा, मदन पंडित, मनोज ठाकुर, हीराकांत ओझा, उमाकांत ओझा, राकेश ओझा, विमल तिवारी व अश्विनी पांडेय ने खूब जमकर फगुआ गायन किया। इस दौरान आयोजन में आए सभी लोग सुर मिलाते व झूमते नज़र आए।
संस्था की अध्यक्षा मधुलिका सिन्हा ने कहा कि यह आयोजन साहित्य और पारंपरिक गवनई को समायोजित कर किया गया। आए हुए सभी लोगों ने कविताओं का आनंद उठाया और फ़गुआ के गायन में झूमे भी। उपाध्यक्ष जीतेन्द्र शुक्ल ने बताया कि ऐसे कार्यक्रम हमारी पीढ़ियों को जोड़ते है और शिक्षा देते है। प्यार के त्यौहार होली में ऐसे आयोजन ज़रूरी है। सचिव राकेश गुड्डु ओझा ने कहा कि गंवई फ़गुआ गायन के जो पुराने परम्परागत गीत है वो लोग भूलते जा रहे है। इसीलिए हमलोगों ने उस गवनई को कराया।
डॉ मदन मोहन द्विवेदी ने झाल बजाते हुए खूब फ़गुआ गाया। डॉ विजय गुप्ता भी फ़गुआ में सुर मिलाते हुए झूमते रहे। वहीं, कमलेश तिवारी भी खुद को ना रोकते हुए झाल लेकर बजाते हुए झूमते नज़र आए। उन्होंने बताया कि होली का मतलब हीं यही है। सभी झूमे गायें, प्यार से रहें।
वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र ने कहा कि आज के दौर में गीतों में अश्लीलता बढ़ रही है और परंपरा लुप्त हो रही है। इसे संजोना ज़रूरी है। कविताई परिवार ने इसे संजोने का काम किया है। यही तो साहित्यिक संस्था का असल उद्देश्य है। मै कविताई संस्था को खूब बधाई देता हूँ।
सृजनलोक के संपादक संतोष श्रेयांश ने कहा कि वर्तमान पीढ़ी फगुआ व चईता गायन की पारंपरिक शैली से वाकिफ नहीं हो पा रही है। ऐसे आयोजन इस पीढ़ी के लिए जरूरी है।
कार्यक्रम का संचालन रूपेन्द्र मिश्र एवं धन्यवाद ज्ञापन आशीष उपाध्याय ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में शुभिका अंजलि, वामिका कौशल, आद्रिका कौशल, राज, अमन कुमार, सक्षम मिश्रा, मनोज ओझा, अभिषेक, राकेश का योगदान सराहनीय रहा।
इस दौरान डॉ कन्हैया सिंह, डॉ विजय गुप्ता, डॉ मदन मोहन द्विवेदी, डॉ संजीत, डॉ अनिल सिंह, वरिष्ठ कवियित्री मीनाक्षी श्रीवास्तव, वरिष्ठ कवि जनार्दन मिश्र, संतोष श्रेयांश, आनंद वात्स्यायन, डॉ हरेंद्र ओझा, कौशल कुमार, डॉ स्वयंबरा, संजय शाश्वत, कृष्णा यादव कृष्नेंदु, जनमेजय ओझा मंजर, हरेंद्र सिंह, अजीत भट्ट, गुंजय कुमार, पद्मा ओझा, शैलेंद्र ओझा, राजू मिश्र, कवि सिद्धार्थ वल्लभ, शशिकला दीक्षित, अनुपम मिश्रा, कवयित्री ममतादीप, अभिषेक वात्स्यायन, राकेश कुमार, विकास सिंह, सुमित भास्कर, विपुल प्रकाश पांडेय, राहुल कुमार सिन्हा, विकास पांडेय, दीपक सिंह निकुम्भ, करुणा कुमारी समेत कई लोग उपस्थित रहे।