रूपेन्द्र मिश्र
आम जनता के लिए इतना पैसा सुन पाना भी कभी- कभी नसीब होता है। साधारण सी सोच कहती है की इतने पैसे में विकास के कई सारे काम हो सकते है। पर, कई मूलभूत सुविधाओं की कमी झेल रहा, बेरोज़गारी का दंश झेल रहा, अपना गरीब राज्य बिहार इतना पैसा महज़ एक यात्रा में खर्च कर सकता है.
सोचने पर यह बात हज़म नहीं हो रही, पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की आगामी महिला संवाद कार्यक्रम के आयोजन में ये राशि खर्च होने वाली है! मुख्यमंत्री की इस महिला संवाद यात्रा पर तीखा प्रहार करते हुए पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने व्यय स्वीकृति का कैबिनेट नोट सबके समक्ष रखा है। उस नोट प्रति की तस्वीर हम आपको दिखा रहे।𝟐 अरब 𝟐𝟓 करोड़ 𝟕𝟖 लाख रुपए के इस स्वीकृत व्यय प्रति को प्रस्तुत करते हुए तेजस्वी ने लिखा है कि “जी हाँ! आपने सही सुना और ये कैबिनेट नोट भी सही पढ़ा। मात्र 𝟏𝟓 दिनों की यात्रा में अरबों रुपए बिहार के खजाने से मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार अपने प्रचार प्रसार की बाढ़ में बहाने जा रहे है।”
सवाल यह ज़रूर है कि क्या 𝟏𝟓 दिनों की यात्रा में इतनी बड़ी राशि का व्यय राज्य हित में है ?
क्या बिहार इस यात्रा से विकास के नए आयाम हासिल करने वाला है?
या सच में महज़ एक आयोजन के नाम पर इतना बड़ा खर्च बिहार के सरकारी ख़ज़ाने का दुरुपयोग है?

ऐसे ही सवाल उठाते हुए तेजस्वी यादव ने सोशल मीडिया “X” पर पोस्ट लिखा कि “𝟐𝟎 बरस तक बिहार को बेतहाशा बेरोजगारी, बड़े पैमाने पर पलायन, जानलेवा महंगाई, अपरम्पार अपराध तथा भीषण भ्रष्टाचार की आग में झोंक कर श्री नीतीश कुमार द्वारा पिछड़े व गरीब राज्य की गरीब जनता का 𝟐𝟐𝟓,𝟕𝟖,𝟎𝟎,𝟎𝟎𝟎 ₹ अपनी चुनावी पिकनिक पर फ़िज़ूलखर्ची करना क्या जायज़ है?”
दरअसल, ये सवाल सभी बिहारवासियों का है। मूलभूत सुविधाओं की कमी झेल रहा अपना राज्य महंगाई की मार भी सह रहा है। यहाँ हर राज्य के अपेक्षा बिजली महँगी है। सुविधाजनक बोल कर लगाए गए स्मार्ट प्रीपेड मीटर से तो आए दिन लोग परेशान रह रहे है। पेट्रोल-डीज़ल की क़ीमतें अपने पड़ोसी राज्यों से भी कई रुपए महँगी रहती है। शहरों के अंदर दुरुस्त सड़के देखना तो लोग भूल ही चुके है। नल-जल ने कई गलियों और सड़कों को उजाड़ कर रख दिया। सरकारी कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार बिना भेदभाव सबको निगल रहा है। राज्य में शराबबंदी पर हर रोज़ प्रश्नचिन्ह खड़ा होता है।
आए दिन प्रतियोगी परीक्षाओं से जुड़े स्कैम व्यवस्था का पोल खोलते रहते है। युवाओं का भविष्य ऐसे ही तो डूब रहा। अंततः मजबूरी वश स्थिति बन जाती है पलायन की। सुविधा देने की बात पर हम गरीब राज्य हो जाते है। फिर, ऐसे आयोजन में इतनी बड़ी राशि कहाँ से आ जाती है?
तेजस्वी ने लिखा है कि “छात्राओं व महिलाओं के लिए जमीन पर कुछ नहीं लेकिन प्रचार के लिए अरबों रुपयों को अधिकारियों के हाथों लुटाया जा रहा है। संवाद के “शून्य मुद्दों” पर नीतीश कुमार 𝟐𝟐𝟓,𝟕𝟖,𝟎𝟎,𝟎𝟎𝟎 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहे है।”
उनके इन आरोपों से स्वतः अपनापन इसलिए बन जा रहा क्योंकि धरातल पर ये आरोप सही लगते है और यह बात ज़मीन से जुड़े सभी बिहारवासी जान रहे है।
जनप्रतिनिधियों से अब एक माँग और होनी चाहिए। स्व प्रचार और योजनाओं की उपलब्धियाँ गिनाने में सरकार बड़े- बड़े होर्डिंग, पोस्टर-बैनर एवं अख़बारों में विज्ञापन देकर पूर शहर पाट देते है। तो क्या जनता के हित में ऐसे आयोजन व यात्राओं के फ़ायदे के साथ उसमें होने वाले व्यय ब्यौरे का पोस्टर-बैनर व विज्ञापन नहीं लगाना चाहिए?